एहसास, तुम हो, तुम और मैं, पूर्णमासी के चाँद, मेरे लिए तुम शायरी ||लव शायरी || Aarti Rathore

हेलो दोस्तों आज हम आपके लेकर आये है आरती राठौर जी द्वारा लिखी गयी कुछ शायरी का संग्रह जैसे  एहसास, तुम हो, तुम और मैं, पूर्णमासी के चाँद, मेरे लिए तुम,
आशा करते है आपको पसंद आएगी 


लव शायरी

Love Shayari by Aarti Rathore

एहसास


शाम का ढलता सूरज ,

जब याद तुम्हारी ले आया ,

आंसू की इक बूँद ने जब ,

हर तमन्ना को महकाया |

 

बनकर साया  तुम मेरे साथ थे ,

हर उस वक़्त मैंने तुम्हे महसूस किया ,

जब मुझे  तुम्हारी ज़रुरत  थी |

 

 और कभी कभी तो यूँ ही ,

शायद इसलिए की ,

तुम हर लम्हा मेरे पास हो ,

जो कभी ख़त्म न हो ,

वो महकता एहसास हो ||


तुम हो


तुम सुगंधित भोर हो,

तुम ह्रदय का शोर हो,

तुम हवा सी हो नज़र नहीं आती,

पर रहती चारों ओर हो,

तुम आत्मा  हो,

तुम विश्वास हो,

तुम निष्कलंक जीने का विश्वास हो,

जो आम को भी ख़ास बना दे, वो अप्रतिम एहसास हो,

तुम ब्रह्म कमल हो,

तुम शांत दावानल हो,

तुम नदियों  का संगम , भागीरथी का निर्मल जल हो,

जो स्वर्ग की अनुभूति दे, तुम वो पावन पल हो  ||


तुम और मैं



पूर्णिमा का चाँद तुम,

और चकोर की प्यास मैं|

भोर की पहली किरण तुम,

उसमे बसा विश्वास मैं|

रजनीगंधा की कली सी तुम,

और खुशबू का एहसास मैं|

ढलते सूरज सी शीतल तुम,

अगले दिन का विश्वास मैं|

कल्पवृक्ष इस सृष्टि का तुम,

इस सृष्टि का आधार मैं|

टूटते तारे सी नि:शब्द तुम,

उस ख़ामोशी में बसी आस मैं|

खुद को समर्पित करती तुम,

अपने को ईश्वर मानता गुनहगार मैं|

अखंड जीवन का आधार स्तम्भ तुम,

उसे खंडित करता व्यभिचार मैं|

विधाता का उत्कृष्ठ कथानक तुम,

उसे दिशाहीन करता कथाकार मैं|

सोनजुही के फूल सी तुम,

उसके मुरझाने का  ज़िम्मेदार मैं|

दिव्य समर्पण भाव तुम,

उस समर्पण का हक़दार मैं|

सिन्दूर भरी मांग में सजती तुम,

उस श्रृंगार का हक़दार मैं|

 

हो लाखों वेदनाएँ लिए तुम,

उन सबका ज़िम्मेदार मैं ||


पूर्णमासी के चाँद



कभी पूर्णमासी के चाँद को देखा है तुमने,

बस वैसी ही हो तुम,निर्मल,चंचल  और शीतल,

मेरे आसपास ही  रहती हो,उसी निश्छल चांदनी की तरह,

दूर करती हो मेरे जीवन का अँधेरा |

 

यकीं दिलाती हो,चाहे कितनी ही कठिनाई आए,

या पथ में कोई बाधा मिल जाए,

एक सुबह ज़रूर लाएगी ,मेरी सफलता का स्वर्णिम सवेरा |

 

रंगहीन है जीवन मेरा,इसे सतरंगी भी तुम ही बनाती हो,

मेरे जीवन के कोरे कैनवास का,

तुम ही हो रंगीन चितेरा |

 

तुम आती जाती रहती हो,बस ठहर क्यों नहीं जाती,

अपने घटते बढ़ते प्रेम  से,क्यों हर पल मुझे हो सताती,

सब कुछ मिल जाएगा मुझको,गर मिल जाए संग तेरा |

 

पर मुझको तो तुम्हारा ये ,टुकड़ों में मिलता प्रेम ही भाता है,

कतरा कतरा तेरे साथ जीने का,मज़ा जो इसमे आता है,

मैं तेरे जितना ही पावन हो जाऊँ, जो मान ले तू मुझको मनमीत तेरा ||



मेरे लिए तुम


मेरे संजीदा से जीवन का,

मुस्कुराता काव्य तुम|

कोई समस्या हो खड़ी,

लगती हो समुचित उपाय तुम|

स्याह काली रातों को उजालों से भर देती हो,

जब मिलती हो मुझसे नैन दीपकों को जलाये तुम|

मन की तरह विचार भी एका गए है,

बन गयी हो मेरा यथोचित पर्याय तुम|
 

आत्मा में आत्मा का,

पवित्र मेल हो तुम|

लोक और परलोक को ,

एकाकार करती हो तुम|

भाव मन में बस एक ,

प्रेम की ही रहती है अखंड |

पावन गंगा सी अविरल बहकर,

मेरे मन को शिवाला किये जाती हो तुम|
वो रिश्ता

दो जिस्म एक जान हुए ,

एक दूजे पर यूँ क़ुर्बान हुए,

दुआओं में मेरी बस तेरा ही जिक्र रहता है,

सजदों में ताउम्र हमसे ये गुनाह हुए |

पहली मुलाकात से अबतक ,

हर लम्हा एक कहानी है ,

जो कभी मुझे तुझसे सुननी ,

और कभी तुझे सुनानी है |

हंसी, मुस्कराहट, गले-शिकवे ,

और जाने कितने बेनाम अहसास है ,

हर पल अमर है जिसका ,

तुझसे वो रिश्ता रूहानी है||


शायरी

तुम


मेरी हर सांस में ,

इक सांस बन कर ही  महकना तुम |

अपना अक्स दिखता हो ,

इसी तरह निखरना तुम |

मेरी दुनिया सिमट जाए ,

इसी तरह बिखरना तुम |

खुदा को तो कभी भी माना नहीं मैंने ,

मगर मेरे लिए तो  बस खुदा ही रहना तुम|



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Aarti Rathore


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