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राहुल शर्मा 'द्वंद्व' द्वारा कल, माँ, जिन्दगी, किसान पर शायरी
"जिन्दगी"
कभी झूठे ख्वाब दिखती है जिंदगी
कभी हकीकत से मिलती है जिंदगी
कभी पक्षी सा उड़ती है जिंदगी
कभी धूल में मिलती है जिंदगी
कभी लगे सतरंगी है जिंदगी
कभी बेरंग हो जाती है और
कभी भीड़ से रिश्ता बनती है जिंदगी
कभी भीड़ में अकेली हो जाती है जिंदगी
माना नहीं बोलती है जिंदगी
लेकिन इशारों से सब बताती है जिंदगी
आख़िर इतनी क़ीमती क्यों है जिंदगी
मौत तुझे क़ीमती बनती है जिंदगी
"मज़दूर"
मैं सडकों पर चलने को मजबूर हूँ
क्योंकि मैं मजदूर हूँ
मेरा दर्द कोई क्यों समझे
क्योंकि मैं खादी की नजरों से कोसों दूर हूँ
क्योंकि मैं मजदूर हूँ
दो रोटी के सफर के लिए
हजारों किमी चलने को मजबूर हूँ
क्योंकि मैं मजदूर हूँ
स्वतंत्र भारत की स्वतंत्र प्रभा मे
मैं जीने के अधिकार से भी दूर हूँ
क्योंकि मैं मजदूर हूँ
"'माँ"
माँ एक शब्द नहीं
जीवन का सार है
हर जगह नहीं हो सकता है ईश्वर
इसीलिए माँ दुनिया में ईश्वर का अवतार है
मेरी हर उदासी को
मुझसे पहले महसूस कर लेती हो
माँ तुम मेरा चहरा केसे पढ़ लेती हो
"आखिरी पन्ने मे "
तेरा मेरा साथ लिखा है
उस आखिरी पन्ने में
मेरा हर ज़ज्बात लिखा है
उस आखिरी पन्ने में
टूटे दिल का साज़ लिखा
उस आखिरी पन्ने में
मेरा हर राज़ लिखा है
उस आखिरी पन्ने में
मेरे जीवन का सार लिखा है
उस आखिरी पन्ने में
"जिज्ञासा"
भोर हुई सूरज निकला
मन में उठी जिज्ञासा
सूरज से आगे निकलने की
किरणों से तेज चलने की
पक्षी सा उड़ने की
दीपक सा जलने की
मन मे उठी जिज्ञासा
लक्ष्यों तक जाने को
पथ का पथिक बन जाने को
दुविधाओं का हल पाने को
अपनी मंजिल तक जाने को
मन मे उठी जिज्ञासा
जिज्ञासा तारो तक जाने की
जिज्ञासा कागज की नावें बनाने की
जिज्ञासा मेलों - खेलों की
जिज्ञासा मिट्टी के महलों की
जिज्ञासा फिर बच्चा बन जाने की
"किसान "
मेंने देखा एक किसान
था व्याकुल परेशान
लेकिन उसकी व्यथा मैं पूछ ना पाया
उसकी गम्भीर काया से घबराया
हाड़ मांस का पिंजर था वह
थोड़ी बची थी उसमे जान
मेंने देखा एक किसान
था व्याकुल परेशान
मेंने सारा वृतांत राज दरबार में बोला
अपने प्रश्नों का पिटारा खोला
लेकिन मेरे प्रश्नों पर खादी धारी रहे मोन
तो मेरे प्रश्नों के उत्तर देता कौन
लूट चुका था फसलों का मान
मेंने देखा एक किसान
था व्याकुल परेशान
"कल"
ऐ! कल तू आता क्यों नहीं
इस आज को समझाता क्यों नहीं
कल के लिए मेंने सपने सजोए
लेकिन आज तो मेंने आराम में खोए
तो ऐ! कल तू आता क्यों नहीं
इस आज को समझाता क्यों नहीं
मंज़िल मेरे पास खड़ी
लेकिन एक पग तक उठाया जाता नहीं
ऐ! कल तू आता क्यों नहीं
इस आज को समझता क्यों नहीं


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