इस पोस्ट में हम शिवांश पारासर के द्वारा लिखी हुई शायरी लेकर आये है जिसमे उन्हें शिक्षात्मक कविता जैसे पेड़ बचाओ और जल बचाओ से लेकर टुटा हुआ दिल जैसे विषय पर लिखा है
---इंतज़ार--
✍️ Shivansh Parasar
मैं तो इंतज़ार कर ही रहा था
तुम्हारे उन शब्दों के बाद
कि तुम वहीं रहना पटना कॉलेज के गेट पर
मैं आती हूँ।
मैं तो इंतज़ार कर ही रहा था
तुम्हारे उन शब्दों के बाद
कि मैं लाल कुर्ती में आती हूँ।
मैं तो इंतज़ार कर ही रहा था
तुम्हारे उन शब्दों के बाद
कि तुम काले रंग की कमीज में आना।
मैं तो इंतज़ार कर ही रहा था
तुम्हारे उन शब्दों के बाद
कि मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ।
मैं तो इंतज़ार कर ही रहा था
तेरे उन सारी बातों के बाद
जिसे तुम फिर दुहराती
मुझसे मिलने के बाद।
मैं तो इंतज़ार कर ही रहा था
कि तुम आओगी ,
आगोश में लेकर मुझे
मेरी रूह से मिलवाओगी।
पर तुम नहीं आई
इंतज़ार की हद हो गयी
दिल कहता तुम आओगी
दिमाग कहता ना
अब वो ना आएगी।
सुबह से दोपहर
दोपहर से शाम
अब तो रात हो गयी
मैं तो इंतज़ार कर ही रहा था
फिर ना जाने क्या बात हो गयी?
रात भर खुली आँखों से सोया
तुझको देखने तेरे ही घर आया
मुझे परेशान कर तू
यहाँ चैन की नींद सो रही थी
चल अब उठ
देख मैं काली कमीज़ में आया हूँ
आगोश में भर ले मुझे
तम्हारा व्रत तोड़ने मैं तीज में आया हूँ ।
मैं तुम्हें दिखाने के लिए
तैयार होकर आया हूँ
पर तुमने ये कैसा श्रृंगार कर रखा है?
भला कानों में कनवाली
नाकों में नकवाली
के जगह रुई कौन लगाता है?
और जब आशिक खड़ा हो पास में
तो ऐसे मूँह कौन बनाता है?
मैं यहाँ खड़ा हूँ
पर तुम बोल क्यों नहीं रहीं?
इतने बकबक के बाद भी
आँखें खोल क्यों नहीं रही?
कहीं तुम भी औरों की तरह
बेवफा तो नहीं हो गयी
मुझे छोड़ इस दुनिया से
दफ़ा तो नही हो गयी
देखो न कैसे कैसे खयाल आ रहे
मन में अजीबोगरीब सवाल आ रहे
लगता है तुम मुझसे फिर नाराज़ हो गई हो
या शायद बीमार हो गयी हो।
ठीक है मैं जाता हूँ, तुम आना
जब नाराज़गी..
ये बीमारी दूर हो जाये
मैं काली कामीज़ में वहीं तुम्हारा इंतज़ार करूँगा
तुम लाल कुर्ती में आना।
मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ
कल भी किया था
आज भी ,अब भी।
जल ही जीवन है ❤️✍️
✍️ Shivansh Parasar
ना कोई रंग है,ना कोई आकार है,
बुनियाद पर जिसकी,जिंदगी का संसार है,
अनुपम धन है,अनोखी बड़ी कहानी है,
शीतल है, पवित्र है, नाम धराया पानी है।
कहीं बर्फ में, तो कभी बादल में,
तो कहीं ओस बनकर,मोती सा ठहरा,
रुप तो इसके अनेक हैं,
तन-मन को शीतल कर दे,
कार्य भी बड़े नेक है।
ऐसा कोई काम बता दो,
जो इसके बिना संपन्न हो पाए,
जल के बिना तो,
धरा पर भी कम्पन हो जाएं।
व्यर्थ बहाकर हमने जल को,
अगली पीढ़ी का दोषी नहीं कहलाना है,
मिलकर सबने पानी की,
बूंद बूंद को बचाना है।
पानी का काम पानी करता है,
विकल्प न इसका दूसरा कोय,
जल के बिना तो जीवन की,
कल्पना मात्र भी न होए।।
कवि:-शिवांश_पाराशर🎤♥️
#वृक्ष_धरा_के_भूषण_है_करते_दूर_प्रदूषण_है।।
पेड़-पौधे,पुष्प ,वन, उपवन ये हैं प्रकृति के श्रृंगार।
इसके अभाव में नभ से बरसता अंगार ।
पर्यावरण लगता बिल्कुल खाली खाली,
अगर न छायी होती हर तरफ़ हरियाली ।
जीवों को शुद्ध हवा न मिलता,
बहुत रोगों का दवा न मिलता ।
कहाँ कूकती ये कोयल मतवाली,
अगर न छायी होती हर तरफ़ हरियाली ।
पेड़ न होते तो ससमय बरसात न होती,
ठंडी ठंडी सुहानी व मधुर रात न होती ।
छिन हीं जाती जीवन की खुशहाली,
अगर न छायी होती हर तरफ़ हरियाली ।
औद्योगीकरण के दौर में वन विनाश किया जा रहा है,
शहरीकरण के लिए नदी को नाला बनाया जा रहा है ।
सूनी हो हीं जाती हम सब की थाली,
अगर न छायी होती हर तरफ़ हरियाली ।।
#आधुनिक _अध्यक्ष
कवि-शिवांश पाराशर
आधुनिक अध्यक्ष रेडीमेड होते हैं,
अपने चेहरे पर अजीबोगरीब
बनावटी मुस्कान लिए होते हैं।
आज के अध्यक्ष बड़े ही रेडीमेड है,
यह किसी भी विषय पर बोल सकते है,
किसी भी सभा में आनाऔर,
बातों को घुमाकर बोलना इनका पेशा होता है।
आज के अध्यक्ष राजनेता के ,
साथ-साथअभिनेता भी होते हैं,
जब भी ये किसी सभा में उपस्थित होते हैं,
पहले तो यह बड़ी चालाकी से
माहौल को समझते हैं और,
यदि माहौल इनके विपरीत होने लगे ,
तो अपने अभिनय से सभा को ,
जीतने की भरपूर कोशिश करते हैं,
और वे कहीं ना कहीं ,
इसमें कामयाब भी होते है।
अत:हमें अपनी सोच बदलनी होगी,
और उनकी चालाकी समझनी होगी।
रेडीमेड अध्यक्ष अक्सर,
दो कोट सिलवा कर रखतेहैं ,
उन्हें डर होता है ना जाने ,
कब किस सभा में जाना पड़े।
किसी भी सभा में देर से
पहुंचने को अपनी शान समझते हैं,
आज के रेडीमेड अध्यक्ष ,
आम जनता को मूर्ख समझते हैं।
आज जनता को अपने मत का,
उचित प्रयोग करना होगा और,
ऐसे रेडीमेड अध्यक्ष को,
गद्दी पर बैठाने से बचना होगा।
आधुनिक अध्यक्ष रेडीमेड होते हैं
अपने चेहरे पर अजीबोगरीब
मुस्कान लिए होते हैं।।
#चंचल मन
कवि-शिवांश पाराशर
यह मन बड़ा चंचल है,
भटकता हर पल है।
कभी कुछ सोचता है,
कभी कुछ सोचता है,
पर ना जाने यह सही जगह;
क्यों नहीं सोचता है।
असल में क्या है यह मन,
नहीं समझ सकते हम साधारण जन।
कभी सागर की गहराइयों में,
कभी आसमान की ऊंचाइयों में ले जाता है,
ऐ मन तू मुझे बहुत भटकाता है।
ऐ मन तूं कितनी जल्द परिवर्तित होता है,
ना जाने तू कब किस ओर अग्रसित होता है।
पर मन की अपनी एक महत्ता है ,
इस बात को वह स्वयं अच्छी तरह समझता है।
मन तो खुले आसमानों में उड़ना चाहता है,
स्वच्छंद वातावरण में बिचरना चाहता है।
चंचल मन की चंचल धारणाएं,
वह भी खुलकर व्यक्त करता है अपनी भावनाएं।
जिस दिन तुझ पर काबू पा लूंगा ,
उस दिन पूछूंगा ऐ मन तूं इतना चंचल क्यों है?
यह मन बड़ा चंचल है,
भटकता हर पल है।।
#लालच बुरी बला है।।कवि-शिवांश पाराशर
है सच यह ,
इसमें कोई दोराय नहीं है।
होती है प्रकृति मनुष्य की ऐसी,
नहीं समझ पाता फर्क लालच और जरूरत में।
मनुष्य जब फंसता है लालच की चंगुल में,
नहीं कर पाता फर्क सही और गलत में।
लालच इंसान को अंधा कर देता है,
उससे उसका सब कुछ ले लेता है।
कठिन है समझाना लालची इंसान को,
वह तो लालच में भूल जाता है भगवान को।
लालच एक ऐसा अस्त्र है,
जिसके सामने इंसानियत हो रही निशस्त्र है।
इंसान नहीं कर पा रहा है फर्क लालच और जरूरत में,
लालच के चक्कर में वह भूलता जा रहा है फर्क हिंसा और अहिंसा में।
पर जब इंसान को सबक सिखाती है जिंदगी,
तब इंसान फर्क करना सीखता है लालच और जरूरत में।।

1 Comments
TNX ❤️
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